Thursday, October 27, 2016

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अस्थायी कर्मचारियों को देना होगा नियमित कर्मचारियों के बराबर वेतन ।

संविदा के नाम पर सरकारों द्वारा शुरु की गयी शोषण की परम्‍परा  पर आखिर सुप्रिम कोर्ट ने विराम लगाने का प्रयास करते हुए कहा है कि, अस्थाई या कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे कर्मचारियों को भी नियमित कर्मचारियों के बराबर सैलरी मिलनी चाहिए. कोर्ट ने कहा है कि 'बराबर काम के लिए
बराबर पैसे' को मानना होगा. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये भी कहा
कि कम पैसे देना दमनकारी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "कोई भी अपनी मर्जी से कम वेतन पर काम नहीं करता। वो अपने सम्मान और गरिमा की कीमत पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इसे स्वीकार करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने देश के लाखों अस्थायी कर्मचारियों को राहत देते हुए बुधवार (26 अक्टूबर) को फैसला दिया है कि सभी अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन मिलना चाहिए। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांतपर जरूर अमल होना चाहिए। अदालत के इस फैसले से अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम कर रहे लाखों कर्मचारी लाभान्वित होंगे। जस्टिस जे एस केहर और जस्टिस एस ए बोबड़े की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि समान काम के लिए समान वेतनके तहत हर कर्मचारी को ये अधिकार है कि वो नियमित कर्मचारी के बराबर वेतन पाए। पीठ ने अपने फैसले में कहा, “हमारी सुविचारित राय में कृत्रिम प्रतिमानों के आधार पर किसी की मेहनत का फल न देना गलत है। समान काम करने वाले कर्मचारी को कम वेतन नहीं दिया जा सकता। ऐसी हरकत न केवल अपमानजनक है बल्कि मानवीय गरिमा की बुनियाद पर कुठाराघात है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सर्वोच्च अदालत अपने कई फैसलों में इस सिद्धांत का हवाला दे चुकी है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून होता है। पीठ ने अपने फैसले में कहा, “कोई भी अपनी मर्जी से कम वेतन पर काम नहीं करता। वो अपने सम्मान और गरिमा की कीमत पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इसे स्वीकार करता है। वो अपनी और अपनी प्रतिष्ठा की कीमत पर ऐसा करता है क्योंकि उसे पता होता है कि अगर वो कम वेतन पर काम नहीं करेगा तो उस पर आश्रित इससे बहुत पीड़ित होंगे।
जस्टिस केहर द्वारा लिखित फैसले में कहा गया है, “कम वेतन देने या ऐसी कोई और स्थिति बंधुआ मजदूरी के समान है। इसका उपयोग अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाते हुए किया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि ये कृत्य शोषणकारी, दमनकारी और परपीड़क है और इससे अस्वैच्छिक दासता थोपी जाती है।” अदालत ने अपने फैसले में साफ कह कि समान काम के लिए समान वेतन का फैसला सभी तरह के अस्थायी कर्मचारियों पर लागू होता है। फैसले का सारांश -Judgment are extracted hereunder:-
“(1)    A  daily  wager,  ad  hoc  or  contractual  appointee  against  the  regular sanctioned posts, if appointed after undergoing a selection process based upon  fairness  and  equality  of  opportunity  to  all  other  eligible  candidates, shall  be  entitled  to  minimum  of  the  regular  pay  scale  from  the  date  of engagement.
(2) But  if  daily  wagers,  ad  hoc  or  contractual  appo intees  are  not appointed  against  regular  sanctioned  posts  and  their  services  are  availed continuously,   with   notional   breaks,   by   the   State   Government   or   its instrumentalities  for  a  sufficient  long  period  i.e.  for  10  years,  such  daily wagers,  ad  hoc  or  contractual  appointees  shall  be  entitled  to  minimum  of the regular pay scale without any allowances on the  assumption that work of perennial nature is available and having worked for such long period of time, an equitable right is created in such category  of persons.  Their claim for regularization, if any, may have to be considered separately in terms of legally permissible scheme.
(3) In the event, a claim is made for minimum pay scale after more than three  years  and  two  months  of  completion  of  10  years  of  continuous working, a daily wager, ad hoc or contractual employee shall be entitled to arrears for a period of three years and two months.”

       स्थिती और स्‍पष्‍ट करते हुए माननीय न्‍यायालय ने कहा कि ऐसे नियुक्त कर्मचारी जो किसी स्‍थायी पद के सापेक्ष नियुक्‍त हो, और उनकी नियुक्ति उचित प्रक्रिया से की गयी हो, और उन्‍होने सेवा के 3 वर्ष पूरे कर लिए हो उन्‍हे न्‍यूनतम पे स्‍केल उसकी नियुक्ति की तिथि से देय होगा।
अदालत पंजाब सरकार के लिए काम कर रहे एक अस्थायी कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा नियमित कर्मचारियों के बराबर वेतन दिए जाने की याचिका ठुकराई जाने के बाद पीड़ित कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी। हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत को समान काम के लिए समान वेतनके सिद्धांत पर जरूर अमल करना चाहिए क्योंकि उसने भारत के वेलफेयर स्टेट होने का तर्क भी दिया और कहा कि 10 अप्रैल 1979 को इंटरनेशनल कोवेनैंट ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चरल राइटसपर दस्तखत किया था।
फैसले को देखने के लि‍ए यहॉ क्‍ि‍लक करें- http://judis.nic.in/supremecourt/imgs1.aspx?filename=44272

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