Saturday, December 6, 2014

मनरेगा से पीछा छुडाना चाहते है भ्रष्‍ट अ‍धिकारी

             लोगों केा रोजगार उपलब्‍ध कराने के उद्देश्‍ा से  चलाई गयी विश्‍व की सबसे बडी रोजगार परक  मनरेगा योजना केा आरम्‍भ से ही भ्रष्‍ट नौकरशाहो एवं नेताओ की नजर लग गई । और योजना भ्रष्‍टाचार के मकडजाल मे फस गयी। जिन्‍होने योजनारम्‍भ्‍ा से ही इसमें जमकर लूट पाट की और अपनी तिजोरियॉ भरने में लगे रहे । इनके लिए 2007 से 2010 तक योजना का स्‍वर्णीम काल रहा, इसके लिए उन्‍होने प्रारम्‍भ से ही सुनियोजित तरीके योजना के सही पहलू को जनता से दूर रखा और इसे कुछ लोगों के लिए धन लाभ का साधन बना डाला ।  योजना को शुरूवात से ही सर के बल चलाया गया । इसे उसके मूल ला‍भार्थियों अर्थात मजदूरो तक सही ढंग से पहुचने ही नही दिया  । जिससे कि वे इस योजना को सही ढंग से समझ सके जैसा कि हमारे देश में अन्‍य योजनाओ का होता आया है। 
              योजना का मूल उद्येश्‍य था कि ग्रामीण क्षेत्रों में काम के इच्‍छुक परिवारों केा रोजगार उपलब्‍ध कराना , जिसके लिए उनकेा जॉब कार्ड ग्राम पंचायत द्वारा उपलब्‍ध कराया जाना तथा काम की मॉग करने पर कार्य आबटित करना मुख्‍य था। किन्‍तु हुआ बिल्‍कुल उल्‍टा ग्राम पंचायतों में जॉब कार्ड तो बनाये गये किन्‍तु वे  प्रधानो अथवा अन्‍य कर्मचारियों पास ही पडे है। जिनका उपयोग मजदूर नहीं बल्कि अन्‍य लोगों द्वारा अपने हित के लिए किया जाता है, यही कारण है कि पूरे देश में कुल बने जॉब कार्डो में से कुल 23 प्रतिशत मजदूरो की ही कार्य की मॉग दर्ज है बाकी अन्‍य  कार्ड जाली प्रतीत होते है । 
              मजदूरो को तो यह भी नही मालूम है कि कार्य की मॉग भी की जाती है , बल्कि स्‍वहित साध्‍ाकाे द्वारा उनका मॉग पत्र तैयार कर खानापूर्ति कर दी जाती है , और जॉब कार्ड धारी को कुछ धनरशि देकर इस गोलमान में सहभागी बना लिया जाता है। और मेहनतकश मजदूर को भी भ्रष्‍ट कामचोर बनाने तथा चाेरी सिखाने का काम किया जाता है। यदि किसी मजदूर द्वारा कार्य की मॉग की भी जाती है तो उसे नियम कानून की पटटी पढाई जाती है और उसके इस कार्य को गुस्‍ताखी समझा जाता है ।  
              योजना में ठेकेदारी प्रथा पर पूरी तरह से रोक की बात कही गयी थी , लेकिन यह नियम केवल कागजो तक ही रह गया , किसी भी ब्‍लाक पंचायत अथवा जिला पंचायत बिना इसके एक भी कार्य नही कराया गया , यही नही बल्कि एक ही कार्य का कई कई ऐजेन्सियों द्वारा भुगतान तक कराया गया ।
              अब जब नौकरसाहों का यह कुक़त्‍य सार्वजनिक हो रहा है , उनके उत्‍तरदायित्‍व निर्धारित किये जा रहे है , तथा देश भर की जॉच ऐजेन्‍सीयॉ उनके कुक़त्‍यों से पर्दा उठा रही है तेा अब वे इस योजना से पीछा छुडाना चाह रहें है़, साथ ही इस इन्‍तजार में है कि कब ये योजना बन्‍द हो और उनकी जान छूटे।
              साथियों यह सब होता रहा और हम यह सब होता देखते रहे या कहें उससे सहमत रहे । यह हमारी अकर्मणयता ही है जिससे कि हम आज अपने  अस्‍तित्‍व के लिए जूझते नजर आ रहें है, काश कि हमने इस याेजना में चल रहे भ्रष्‍टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने की हिम्‍मत की  होती तो इस योजना पर केवल और केवल हमारा अधिकार होता हमें मानदेय के चेक के लिए किसी की परिक्रमा नही करनी पडती । 
              साथियों अब समय आ गया है ये योजना हमारी है इसे हमें चलाना है , विनियमितीकरण तो हाेना ही है , जब हम इस योजना में अपनी पूर्ण सार्थकता सिद्ध कर देगें  तो मजाल है किसी की, विनियमितीकरण को रोक ले।
खुदी को कर बुलन्‍द इतना कि हर तदबीर से पहले। खुदा बन्‍दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्‍या है।।

5 comments:

  1. प्रिय साथियों,
    जैसा कि आप सब जानते है कि भारतवर्ष के सभी राज्यों में मनरेगा कर्मचारी वर्ष 2006 से अपना कार्य लगन व् इमानदारी से निभा रहे है| पुरे भारत वर्ष में मनरेगा कर्मचारियों की नियुक्ति वैधानिक प्रक्रिया व प्रयोजन से सरकारी कर्मचारियों की तरह हुई है | न्युक्तियों में आरक्षित पदों के साथ-2, मेरिट प्राप्त BPL परिवारों को प्राथमिकता दी गई लेकिन नरेगा कर्मचारियों की नियुक्ति जिन अनुबंध की शर्तों पर की गयी है वे एकदम असवेंधानिक, अमानवीय, असम्मानित व अन्यायपूर्ण है | नियुक्ति में उचित पारिश्रमिक, ग्रेड पे, महंगाई भत्ता, दैनिक भत्ता, यात्रा भत्ता व् मेडिकल सुविधाएँ, सामाजिक सुरक्षा , सेवा निवृति लाभ, बिमा योजना लाभ, ग्रेच्युटी, बोनस, सेवा पुस्तिका व अन्य उचित सेवा शर्तों की उपेक्षा की गयी है नियुक्तियों में भारतीय संविधान की धारा 14, 21 व 23 का उलंघन किया गया है नरेगा कर्मचारियों की नियुक्ति निश्चित रूप से सामजिक, आर्धिक, और मानसिक पीड़ा देने वाली है तथा कर्मचारियों का जबरन व बलात सेवक के रूप में प्रयोग किया जा रहा है |

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  2. यह प्रशाशन को अवश्य सोचना चाहिए कि विश्व विख्यात रोजगार गारंटी योजना को चला रहे संविदा कर्मी के मानव अधिकारों की रक्षा और भलाई के लिए भी कोई पोलिसी बनाई जाए लेकिन केन्द्र व् राज्य सरकारें भी इस और उदासीन दिख रही है
    हम सरकार से यह पूछना चाहते है कि, क्या संविदा पर पदस्थ कर्मचारियों के मानवाधिकार नही होते ? क्या इन लोगों के परिवार और बच्चे नही होते ? क्या शासन की जवाबदेही इनके प्रति नही है? क्या प्रशाशन का कार्य केवल बलपूर्वक बंधुवा मजदुर कि तरह कार्य करवाना ही है ? क्या संविदा कर्मियों के न्याय के लिए भारतीय संविधान में वर्णित कोई धारा नहीं है


    सरकार ने प्राईवेट संस्थान ,कारखानों आदि में कर्मचारियों मजदूरों के शोषण को रोकने ,सुविधाओं को देने ,कार्य अवधि का निर्धारण के लिए, एक घन्टे का विश्राम, आदि की मानिटरिंग एवं नियमों को लागु करवाने के लिए लेबर आफीसर ,श्रम विभाग व श्रम अधिनियम बनाये हैं परंतु जब स्वयं के विभाग में संविदा कर्मचारियों की बात आती है तो सारे नियम कानून क्यो समाप्त हो जाते हैं ?

    यह बेहद असंवेधानिक एवं अमानवीय दृष्टिकोण है कि अंग्रेजो के समय की गुलामी की पंरपरा ‘बंधुआ मजदूर’ को आज आजादी के 68 साल गुजरने के बाद भी शासन ने संविदा कर्मी के रूप में बनाए रखा है, जिनका न कोई मान है न सम्मान ,जिसका न कोई मानवाधिकार है न कोई भविष्य ,जिसके न कोई कार्य दिवस निश्चित है न कार्य के घन्टे , बंधुआ मजदूर बनकर 24 घन्टे कार्य करके बिना विश्राम के टारगेट पूर्ण करना है |

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  3. नरेगा कर्मियों को दिया जाने वाला वेतन बहुत कम है व संगतपूर्ण नहीं है सभी राज्यों में अलग -2 है | सभी राज्यों में नरेगा में पैसा आने में बहुत समय लग रहा है जिससे न तो नरेगा कर्मियों को समय पर वेतन मिलता बल्कि मजदुर भी समय पर पैसा न मिलने की वजह से नरेगा से भटक चुके है और नरेगा की दिहाड़ी बाजार कि दिहाड़ी से आधे से भी कमहै तथा 100 दिन के बाद मजदूरों को बहार का रास्ता दिखा दिया जाता है जिससे मनरेगा मजदुर मनरेगा से दूर जाते दिख रहे है जिससे मनरेगा स्कीम ही नहीं बल्कि कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ गए है इस दशा में नरेगा की प्रगति में कमी का ठीकरा भी सरकार नरेगा कर्मियों पर फोड़ रही है |


    पंचायतों के 5 वर्ष बाद चुनावों के कारण नए प्रधान/ पंच/मुख्या के कारण वे लोग लगभग तीन वर्षों तक तो कुछ सीख ही नहीं पाते तो नरेगा को चलाने में भी खतरा मंडराया रहता है | कई ब्लोक में कर्मचारियों की कई -2 दिनों तक तबादला होने व रोकने के सिलसिले में नरेगा ठप पड़ा रहता है | मौसम में बदलाव के कारण भी नरेगा ठप पडा रहता है |

    नरेगा में रोजगार सीजनल है ये बात तो केंद्र सरकार व राज्य सरकार भी जानती है तो इन सब कठिनाईयों के बीच नरेगा कर्मचारियों को भूके पेट सोना पड़ता है ये कहाँ का इन्साफ है नरेगा के चलते ( गरीब लोगों की सेवा करते -2) कई कर्मचारियों व उनके परिवार की जिंदगी बर्बाद हो चुकी है अब इन कर्मचारियों को उस मुकाम पर कोइ नही पहुंचा पाएगा जहाँ वे पहले थे |

    नरेगा में उपरोक्त कठिनाई के चलते केंद्र सरकार द्वारा दिया जाने वाला 6% प्रशासनिक व्यय भी बहुत कम होता है जो कि राज्य सरकारें कर्मचारियों के वेतन भी पूरी तरह से नहीं दे पा रही ऐसे में कर्मचारियों के फील्ड यात्रा भत्ता भी भुगतान नहीं किया जाता व कर्मचारी फिल्ड में कार्यों की गुणवत्ता व मजदूरों की मौजूदगी का आंकलन भी नहीं कर पा रहे है जिससे नरेगा कार्मिकों का शोषण हो रहा है मनरेगा कर्मियों को ग्रेड पे, महंगाई भत्ता, दैनिक भत्ता, यात्रा भत्ता व् मेडिकल सुविधाएँ दी जाए |


    मनरेगा अपनी तरह की पुरे विशव में एकमात्र सकीम व एक्ट है व मनरेगा ने गरीबी को दुर किया है ये बात तो छोटे से लेकर हर बड़ा नेता बोलता है लेकिन ये सकीम चल कैसे रही है यह ये लोग जानते ही नहीं है सभी नेता महानुभाव नरेगा का गुणगान करते आये है लेकिन अब तक किसी भी भाषण व वक्तव्य में उन्होंने मनरेगा कार्मिकों का कोई जिक्र नहीं किया है |

    देश के सभी राज्यों में मनरेगा कर्मचारियों का संलग्न पंचायती राज के रेगुलर कर्मचारियों द्वारा हस्तक्षेप किया जा रहा है | इन कर्मचारियों का न तो मनरेगा में कोई विशेष रूचि है न ही ये न ही ये मनरेगा को चलाने के उत्सुक है नरेगा की सारी वितीय व प्रशाशनिक शक्तियां इन कर्मचारियों के पास है मनरेगा कर्मचारियों को इनके दबाव में कार्य करना पड़ता है | कमीशन पर आधारित कर्मचारियों को उपेक्षित दृष्टि से देखाजाता है व उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता इसलिए ग्रामीण विकास विभाग को अलग किया जाये व नरेगा कर्मचारियों को ग्रामीण विकास विभाग का कर्मचारी नियुक्त किया जाये | देश के सभी राज्यों व जिलों में नरेगा कार्मिकों के स्टाफ की कमी है | कर्मचारी पैसे के आभाव व अपना भविष्य के डर से नौकरी छोड़ गए है जिससे नरेगा प्रभावित हुआ है |

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  4. सभी कर्मचारी एक गरीब पिछड़े परिवार लगे हुए है व् ये आस लगाये हुए थे कि अब वे अपना व् अपने परिवार का पालन पोषण आसानी से कर पायेंगे, क्यों कि उनके माँ-बाप ने उन्हें इसी इरादे से अब तक पाला-पोसा व् पढ़ाया था व इंसान की प्राथमिक आवश्यकता भी यही होती है |

    देश में जब गरीबी और भुकमरी छा रही थी तो मनरेगा कर्मचारियों ने गरीबों का हाथ थामा, गरीब लोगों का मनरेगा में पंजीकरण करवाया, लोगों के खाते खुद जाकर बैंकों में खुलवाए, मनरेगा कर्मी पिछले 7वर्षों मे गावोँ की 70% गरीब अशिक्षित जनता को उँगली पकड़कर आज समाज की मुख्य धारा मे ला खड़ा किया है जो पिछले 60 वर्षोँ मे नही हुआ था | अमीरी - गरीबी के अंतर को कम किया है | लेकिन इसका फल हमें अब बलात सेवक रहकर चुकाना पड़ रहा है |


    मनरेगा कर्मचारी इस बारे पहले भी कई बार अपने -2 राज्यों के ग्रामीण विकास मंत्री , पंचायती राज मंत्री, पंचायती राज डायरेक्टर , ग्रामीण विकास सचिव तथा प्रदेशों के मुख्यमंत्री से स्थायी न्युक्ति व् वेतन की मांग को लेकर मिले लेकिन कोरे आश्वसनो के सिवाए कुछ नहीं मिला उन्हें सिर्फ इस बात पर टलका दिया गया कि मनरेगा एक केंद्र प्रायोजित स्कीम है हम सिर्फ केंद्र से आये पैसे का 6% प्रशाशनिक व्यय ही आपको दे सकते है स्कीम केंद्र की है केंद्र ही आपके बारे में कुछ कर सकता है यदि केंद्र सरकार मनरेगा को बंद कर दे तो राज्य सरकार कर्मचारियों से क्या करवाएगी ? इसलिए आप केंद्र सरकार से अपने भविष्य की गुहार लगाईये राज्य सरकारे इसमे कुछ नहीं कर सकती मनरेगा कर्मचारियों के प्रति राज्य व् केन्द्र दोनों सरकारें उदासीमन दिख रही है |

    अंत में में तो यही कहूँगा कि यदि हम किसी राज्य में रहते है और वहाँ के लोगों के विकास के लिए कार्य कर रहे है तो उस राज्य का दायित्व बनता है कि यदि उन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता तो कम से कम अन्य विभागों में समायोजित किया जाए ताकि उनकी सेवा को नियमित किया जा सके और उन्हें राहत प्रदान कि जाये | जय हिंद , जय भारत |

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  5. उपलब्धियां (Achievements):-
    १. 2005-06 की अपेक्षा अधिक लोगों को रोजगार मिला |
    २. मनरेगा कर्मचारियों का अथक प्रयत्नों से लोगों के खाते बैंकों में खुले व पेमेंट सीधी लोगों के खाते में गयी जिससे पूर्व में होने वाली लोगों से पैसे छिनने वाली घटनाएँ समाप्त हुई |
    ३. गरीब लीगों को रोजगार मिला सरकार ने भी गरीबी रेखा की सीमा बढाई
    ४. मनरेगा कार्मिकों को अच्छा वेतन मिलने वाले राज्यों में मनरेगा का कार्य अच्छा हो रहा है
    ५. सम्पूर्ण रूप से वर्षा पर निर्भर कृषि अब नरेगा से निर्मित टैंक, जोहड़, कुहल, भूमि सुधार, SC/ST व् अन्य वर्ग के भी निजी कार्य, फार्म पोंड पोधा रोपण इत्यादी से कृषि का स्तर ऊँचा उठा |
    ६. महिलाओं की भागीदारी बढ़ी व् महिलाएं आर्थिक रूप से सुद्रढ़ हुई|
    ७. अनुसूचित जाती जन जाती को भी व्यक्तिगत कार्य व् रोजगार मिला उनका जीवन स्तर ऊँचा उठा
    ८. मजदूरों का पलायन रुका जिससे कृषि का स्तर बढ़ा |

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